कई बार भारतीय ग्राहक यह सोच कर हैरान रह जाते हैं कि एक ही मॉडल की कार की कीमत दिल्ली में सस्ती होती है जबकि मुंबई में वह कई हजार से लेकर लाखों रुपये तक महंगी क्यों होती है। इसमें सिर्फ एक्स-शोरूम कीमत नहीं, बल्कि कुल ऑन-रोड कीमत का फर्क होता है, जो विभिन्न शहरों और राज्यों के टैक्स नियमों, रजिस्ट्रेशन फीस, और बाजार की मांग-आपूर्ति के आधार पर अलग-अलग होती है।

चलिए समझते हैं मुख्य कारण जिससे शहर बदलते ही कार की कीमत कैसे प्रभावित होती है:
1. राज्य-स्तरीय रोड टैक्स और रजिस्ट्रेशन शुल्क
भारत में हर राज्य और शहर का अपना रोड टैक्स नियम होता है।
उदाहरण के लिए दिल्ली में रोड टैक्स लगभग 4-10% के बीच होता है जबकि मुंबई, पुणे और अन्य महाराष्ट्र के शहरों में यह लगभग 10-15% रहता है।
मुंबई में डीलर को रजिस्ट्रेशन फीस, स्मार्ट सिटी क्रेडिट, और अन्य स्थानीय टोल एवं शुल्क का भुगतान करना होता है, जो कीमत बढ़ाने का कारण बनता है।
इसके अलावा, महाराष्ट्र में गाड़ियों पर अन्य राज्य की तुलना में अधिक टैक्स और सेस भी लगे हो सकते हैं।
2. बाजार की मांग और आपूर्ति का फर्क
दिल्ली, मुंबई, बैंगलोर, चेन्नई जैसे बड़े शहरों में कार की मांग और आपूर्ति संतुलित नहीं होती।
मुंबई के बाजार में अधिक लोग कार खरीदते हैं, साथ ही कॉम्पैक्ट कारों और लग्जरी कारों की मांग भी अधिक है, जिससे कीमतें बढ़ जाती हैं।
दूसरी ओर, दिल्ली में बाजार थोड़ा संतुलित होता है, जिससे कीमतें अपेक्षाकृत कम रहती हैं।
3. लॉजिस्टिक्स और डीलर शिपिंग कॉस्ट
मुंबई का भौगोलिक स्थिती वाहन ट्रांसपोर्टिंग में कई बार खर्चीली जरूर हो जाती है। इसके साथ ही डीलरशिप संचालन की लागत भी ज्यादा होती है।
दिल्ली में परिवहन लागत और डीलरशिप संचालन खर्च कम होने के कारण कार की ऑन-रोड कीमत कम रहती है।
4. विभिन्न राज्यों के टैक्स नियम
राज्यों के बीच GST के अलावा VAT, एक्स्ट्रा सेस व अन्य लोकल टैक्स के अंतर से भी कीमत में फर्क पड़ता है।
महाराष्ट्र में पेट्रोल और डीजल पर लगे अधिक टैक्स की वजह से वहां ड्यूटी और दाम अधिक होते हैं।
उसी तरह दिल्ली में ईंधन की कीमतें अक्सर कम होती हैं, जिससे वाहनों की कुल कीमत पर फर्क पड़ता है।
5. अतिरिक्त परिवहन और प्रक्रिया शुल्क
हर शहर और राज्य में रजिस्ट्रेशन प्रक्रिया में अलग-अलग शुल्क लगा होता है।
जैसे दिल्ली में FASTag शुल्क कम है, जबकि मुंबई में ये शुल्क थोड़ा ज्यादा हो सकता है।
6. वाहन मॉडल की लोकप्रियता और डिमांड
कुछ शहरों में कुछ मॉडल अधिक लोकप्रिय होते हैं, जिससे वहां उनकी कीमतें बढ़ जाती हैं।
उदाहरण के लिए, मुंबई में लक्ज़री और स्पोर्टी कारों की डिमांड अधिक, जिससे उनके दाम भी अधिक हो सकते हैं।
दिल्ली और आसपास के इलाकों में कॉम्पैक्ट और फ्यूल इफिशिएंट कारों की मांग ज्यादा होने से वे सस्ते मिलती हैं।
7. कनेक्टेड सर्विसेज और अतिरिक्त विकल्प
डीलरशिप अलग-अलग शहरों में अतिरिक्त सर्विस फीस, हैंडलिंग चार्ज और एक्स्ट्रा चार्ज लगाते हैं, जो कीमत को बढ़ा देते हैं।
ग्राहकों को खरीद के समय ऑन-रोड कीमत की पूरी जानकारी लेना आवश्यक होता है ताकि अप्रत्याशित खर्चों से बचा जा सके।
निष्कर्ष
दिल्ली और मुंबई में कार की कीमतों में फर्क होना पूरी तरह से सरकारी नीतियों, स्थानीय टैक्स, बाजार की मांग एवं आपूर्ति, तथा अतिरिक्त सेवा शुल्कों से जुड़ा हुआ है। इसलिए केवल एक्स-शोरूम कीमत देखकर वाहन खरीदने का निर्णय न लें, बल्कि ऑन-रोड कीमत समेत सभी खर्चों का जायजा लें।
सुझाव:
जब भी कार खरीदते समय डीलर से ऑन-रोड कीमत, टैक्स, रजिस्ट्रेशन शुल्क, इंश्योरेंस और अन्य अतिरिक्त खर्चों के बारे में पूरी जानकारी जरूर लें।
शहर बदलने से कीमतों में फर्क हो सकता है, इसलिए यदि संभव हो तो उस क्षेत्र की तुलना करें जहां सबसे उचित कीमत मिलती हो।